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सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

कश्मीर बचाओ

कुछ लोग ऐसा मानने लगे हैं कि काश्मीर के बहुमत का मानना है कि कश्मीर को भारत से अलग हो जाना चाहिए....शायद कश्मीर के 'वजीर-ए-आज़म' शेख अब्दुल्ला की संतानें भी इसी स्वर को पुख्ता करने की कोशिश में जुटी हुयी हैं.यूँ तो कश्मीर हिन्दुस्तान का अभिन्न अंग सदियों से रहा है,जिसे कल्हण ने 'राज तरंगिणी' में भी लिखा है,लेकिन बात आधुनिक युग की करते हैं....
काफी दलीलें दी जा रही है कि जब देश आजाद हुआ था तब कश्मीर के राजा हरि सिंह पाकिस्तान में मिलना चाहते थे,लेकिन पाकिस्तान ने उनकी कुछ शर्तों को मानने से इनकार कर दिया,और उल्टा कश्मीर पर हमला बोल दिया,ऐसे समय में हरि सिंह जी ने भारत सरकार से मदद मांगी,जिसे भारत सरकार ने कश्मीर के भारत में विलय की संधि पर हस्ताक्षर करने की शर्त पर  मदद भेजी...और तब से कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है.
यह कहना जरुरी ना होगा कि जब भारत आजाद हुआ तब बहुत से राज्यों ने विलय की संधि पे हस्ताक्षर किये थे,यह देश के पुनर्गठन की एक प्रक्रिया थी और कश्मीर का उदाहरण कुछ अलग नहीं है.
इतिहास गवाह है कि भारत और पकिस्तान आजाद एक साथ ही हुए थे,लेकिन भारत की छवि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की रही है,और पाकिस्तान एक मुस्लिम राष्ट्र.
बात कश्मीर की करते हैं,हमारी कश्मीर की धरती से लोगों ने आतंकवाद के खिलाफ जान की बाजी लगाकर लड़ाई की है....और अलग होने की बात कश्मीर का जन-मानस नहीं करता,ऐसे वहाँ के सियासती लूटेरे कराते हैं...भारत ने हमेशा कश्मीर में शांति,वहाँ के लोगों के लिए अमन हेतु कुर्बानी दी है,
हमने कश्मीर पर शुरू से ही जो लचर नीति अपनाई आज उसी का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
खैर मैं भी सोचता हूँ कि क्या सच में आजाद कश्मीर खुश-हाल हो जाएगा??
मुझे लगा कि अगर इस सरकार हीन देश ने ऐसा कुछ होने दिया तो कश्मीर का नाश हो जाएगा.
पहली बात तो यह कि उनके पास पर्याप्त सेना बल नहीं है,ऐसी स्थिति में पाकिस्तान से युद्ध की स्थिति में फिर से भारत को ही मदद करनी पड़ेगी.. पाकिस्तान की आर्थिक एवं सामजिक खुश-हाली के बारे में तो शायद सब को पता हो,अगर इस जम्हूरियत के दायरे में कश्मीर भी आ जाये तो क्या अजूबा कर दिखायेंगे....कश्मीर को आजादी देने का सीधा सा मतलब है कश्मीर को पाकिस्तान के हाथों में दे देना,क्यूंकि कश्मीर को अकेला एवं कमजोर देख कर पाकिस्तान उसे हथियाने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा.
अगर कश्मीर कोई नया राष्ट्र बनता है तो यह तो पूर्णतया निश्चित है की उसका स्वरुप एक धर्म-निरपेक्ष राज्य का कदापि ना होगा,क्यूंकि वैसे भी चरमपंथियों  ने कश्मीरी पंडितों की जो दशा की है वो किसी से छुपा नहीं है....चरमपंथियों द्वारा कश्मीरी पंडितों के घर जला दिए गए,उन्हें कश्मीर छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया.....
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान क्या जनता भूल गयी?
कश्मीर आजाद होकर खुद की सुरक्षा नहीं कर सकता,ऐसी स्थिति में पूरी तरह पाकिस्तानी चरमपंथी,जिन्होंने पाकिस्तान को इस मुकाम तक पहुचाया है,क्या कश्मीर को यूँ ही छोड़ देंगे?
हम कश्मीर को अमन एवं खुश हाली का प्रतीक बनाना चाहते हैं,लेकिन हमें चरमपंथ की आग को लकड़ियाँ नहीं देनी चाहिए,वरना ये दशकों से झुलस रहे  कश्मीर  को पूरा जला डालेंगे.
कश्मीर की जनता को भारत से अलग होने पर मजबूर किया जाता है...लेकिन जब हमें इसके परिणाम का अंदेशा है,तो फिर जानते हुए भी किसी को आग में झोंक देना कहाँ तक उचित है??
हमें अलगाव-वादी नाग को फन उठाने का मौका नहीं देना चाहिए,और इस विषैले नाग को अतिशीघ्र नाथने की आवश्यकता है,ताकि यह भारत की राष्ट्रीय अस्मिता को डसने का दुस्साहस ना करे.

शनिवार, 27 मार्च 2010

What is the Earth Hour???I laugh out loud at it.

Can an hour really save the earth?Or is it just a celebrated drama to waste millions on just putting the lights off for an hour?
an IPL match will be seen bright under the floodlights at Mohali in the announced time-period and amazingly there is no match in daytime,so It should have been shifted in the day too...but Mr. Lalit modi perhaps knows it well,that there is nothing going to change after the an hour celebrated darkness...the money speaks louder than anything...and that is perfectly suiting for cricket these days too...or else,what have Ravindra Jadeja done to the spirit of cricket,that he has been banned for IPL3.When these cricketing authories doesn't even bother about cricket,why should they bother about the Earth.

In my village and the place where I live,we usually get a maximum of 8-10 hours of electricity...we often end up celebrating a whole day...sometimes continuously for 3-4 days...the earth-hours...the electricity board too forces us to celebrate it on times,by not providing electricity.
The whole state is not required to be told about the advantages of Earth-hour...but yes,there is no glamor in dark hours of so called small cities...it becomes effective only if it is supported by big names...celebrated in metropolitan societies....by switching off lights for an hour will bring fruitful changes for the welfare of earth...do you think so..
We are habitual to sleep with an eye over the electric bulb to watch eagerly whether the earth-hours will be over today or not...and often we find there is no electricity.....when for hours of electrical cut-off hours could not do better for the environment...I don't understand a reason,how the EARTH HOUR is going to help the earth.can you tell me?
may be big cities have big thoughts...torrential flow of wealth..Glamor everywhere...bigger offices of corruption can bring out bigger effect by swithching off the lights for an hour.lolz.
First of all you need availability of electricity to join hands in the celebrated campaign....This time too,I am writing this when my laptop is running on battery.
May be glamorisation of campaign...celebrated in cosmopolitan niches...supported by T-shirts and Banner,Balloons...and fantastic statements by some powerful people can force the earth to recover from the hazards created by electricity in merely an hour...huh.
You see people there will be an event laughing out loudly over this 'worth almost nothing' initiative will be live on SET MAX,by closing our eyes we are not going to see anything.
The Earth hour is merely a drama,and a joke to people like me,who are quite habitual to spent dark nights,due to electrical cut-off,more than often.
Hence I will not be joining hands in this campaign...I willingly or unwillingly see no electricity in my home for hours long,I never run AC,I don't use room heater,No food is ever cooked in oven at my home,Clothes are washed manually,not by washing-machine.....what more can I do to Earth's favor by switching off the lights just for an hour.

शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

जरा मान लो आप सब्जी लेने बाजार गए.वहाँ आपने देखा एक आदमी सब्जी बेच रहा है.
...बगल में ही ताज़ी सब्जियों का ढेर लगा हुआ हो..और बेचनेवाला जोर जोर से आवाज लगा रहा हो.."सब्जी ले लो.सब्जी ले लो."
लेकिन आप ने उसी दुकान से सब्जी ले ली जिससे आप पहले लेना चाहते थे.
और तभी आश्चर्यजनक तरीके से...वो सब्जीवाला और जोर से आवाज लगाने लगे...."भाइयों देखो इस आदमी को .ये आदमी जिस मोहल्ले में रहता है,वो पूरा मोहल्ला हमारी पूरी कौम को ना-पसंद करता है..ये लोग हमारे मोहल्ले का भला होते नही देख सकते..अगर ये हमसे नफ़रत नही करते तो हमारी ही दुकान से सब्जियां खरीदते.आपलोग बताइए,मेरी सब्जियां ताज़ी है,और सस्ती भी...हर जगह हमारी सब्जी के नाम के चर्चे हैं....फिर कैसे कोई इतना जाहिल हो सकता है कि हमारी सब्जियों की तरफ देखे तक नही....अगर ये जनाब हमारी सब्जी खरीद लेते,तो हमारे मोहल्ले के हर घर में घी के दिए जलते....इन्होने हमारी सब्जियों को भाव नही देकर मेरी जन्मभूमि को नीचा दिखने की नापाक कोशिश की है.जरूर इन्होने किसी के दबाव में मेरी सब्जियां नही खरीदी....अब आपलोग ही इन्साफ दिलाओ हमें."
जरा सोचिये,ये मजमा आपकी आँखों के सामने हो...तो उस वक़्त क्या प्रतिक्रिया होगी?
क्या ये उस सब्जीवाले की बेवकूफी है,या गलती आपकी ही है...........
आप सोचते हैं कि,पैसा मेरा...मर्जी मेरी,....खाना मुझे है,मेरी मर्जी जहां से होगी वहाँ से लूँगा....
कुछ ऐसा ही वाकया इन दिनों क्रिकेट की दुनिया में हो रहा है....पकिस्तान के एक भी खिलाड़ी नही बिके आई पी एल में,लो हो गयी आफत..
बौखला गए बेचारे,और ऐसा ऐसा बयान दे डाला जिससे पूरा IPL संदेह के घेरे में खड़ा हो गया.
मैं सोचने लगा यार कल को कहीं शाहिद अफरीदी साहब भारतीय क्रिकेट टीम के कोच बनने के लिए आवेदन दे दें..और नियुक्ति नही होने पर इसे भी राष्ट्रीय सम्मान का मुद्दा बना दें..कि मेरे नाम पे सबसे तेज शतक बनाने का विश्व कीर्तिमान है..और फिर भी मुझे कोच नही बनाया.....क्यूंकि मैं पाकिस्तानी हूँ,और ये लोग एक पाकिस्तानी को अपना कोच स्वीकार नही कर सकते...ये हमारे साथ भाईचारा नही बढ़ाना चाहते,अगर चाहते होते तो मुझे कोच बनाया होता..
हद हो गयी यार......
अब खरीदना ना खरीदना तो टीम मालिकों के ऊपर है,वे जिसे खरीदना चाहते हैं,खरीदेंगे.मुझे नही लगता कि टेस्ट क्रिकेट खेलने वाले किसी भी देश कि सरकार ये सलाह दे कि किसे टीम में चुनो और किसे नही...हाँ पाकिस्तान में ऐसा होता रहा है,लेकिन भारत सरकार के पास क्रिकेट के अलावा भी काफी कुछ काम है....
IPL में टीम अपनी मर्जी के खिलाड़ी खरीदने को स्वतंत्र है,और उसे कोई दबाव नही दे सकता...पैसा उनका है,उनकी मर्जी जिसे खरीदना चाहे.
और IPL तो लगभग पूरी तरह से एक व्यावसायिक आयोजन है....अब अपने पैसो से कोई दूसरों के कहने पे क्यूँ अपना पैसा गलत जगह लगाना चाहेगा?
तो यह तो स्पष्ट है कि इस खेल में खिलाड़ियों की खरीद बिक्री और टीम के तमाम खर्चे मालिकों कि मर्जी पर हैं..
जो खिलाड़ी हल्ला कर रहे हैं,और अपनी हताशा को राष्ट्रीय गौरव का मुद्दा बना रहे हैं...वो सिर्फ और सिर्फ पैसों की वजह से IPL खेलना चाहते हैं....जहां तक भाईचारा और खेल भावना बढाने का सवाल है तो मैदान पर हमेशा यही लगता है दोनों के बीच क्रिकेट युद्ध हो रहा है....और यकीन मानिए पूरे मैच में सिर्फ बनावटी मुस्कान ही चेहरे पे चस्पा रहती है..
इतिहास उठा के देख लीजिये हर भर इन मित्रवत मुकाबलों में हारने वाले पडोसी कप्तान की गर्दन दबोची जाती है.
जितना तनाव खिलाडियों पर भारत-पाक मैच के दौरान रहता है,उतना किसी और के साथ मुकाबले में नही रहता...तो आखिर कौन सा भाईचारे में इजाफा हो गया..
और इतने सालों से हम एक दूसरे के साथ क्रिकेट खेलते रहे लेकिन कोई अमन चैन नही आया.......
तो यह स्पष्ट है की हमारे क्रिकेट खेलने या ना खेलने से दोनों देशों के बीच ना कोई फर्क पडा है और ना कभी पड़ने वाला है.
सिवाय इसके कि मैच के दौरान घटने वाली घटनाएं जरूर बरसो याद रहती हैं....जैसे आमिर सोहेल और वेंकटेश का वाकया,या फिर मियाँदाद-मोरे.
वैसी ये सारी घटनाएं क्रिकेट मैच के माहौल की वजह से हुयी...भाईचारे का इससे कोई लेना देना नही..तो ये तो स्पष्ट है कि क्रिकेट का अपना अलग रोल है...और बाहरी उद्देश्य का इसपर कोई प्रभाव नही तो अगर कुछ पाकिस्तानी खिलाड़ी कुछ करोड़ों में बिक जाते अमन चैन कैसे आ जाता.....जो अब तक ना आ सका..सोचता हूँ,तो हँसीआती है.
वैसे भाइयों आपकी खेलने की ललक को मैं सलाम करता हूँ....लेकिन राष्ट्रीय परिस्थितियाँ भी कुछ हद तक जिम्मेदार होती हैं.....क्रिकेट के लिए पिछली बार लंका टीम ने आपके यहाँ जान की बाजी लगाई,उन्हें सलाम.लेकिन पता नही आपके यहाँ कब कौन सा धमाका हो जाए और आप को बाहर निकलने की मनाही हो जाए,तो बेचारे टीम मालिक अपना सर तो फोड़ने से रहे...
और वैसे भी अफरीदी साहब के नाम सबसे तेज शतक का रिकॉर्ड पिछले १३ सालों से है...और IPL के प्रथम संस्करण में वो बुरी तरह विफल रहे,और कम सितारों से सजी राजस्थान की टीम ही जीती..शोएब साहब भी कोलकाता के लिए सिर्फ सांत्वना देने आये...आसिफ साहब ने तो अपने कैरियर पे ही प्रश्नचिन्ह लगा लिया था.अभी वर्त्तमान में ही देख लीजिये उनकी टीम की हालत को....हर कोई खुद अपनी मर्ज़ी की करने को आतुर है.
जब देश के लिए एक साथ खेलने में इतनी समस्याएं पाकिस्तानी खिलाड़ियों को है,तो शायद कोई यहाँ अपने पैसे से बाजी नही खेलना चाहता...
हर कोई अपना दाँव ठोक बजाकर लगाना चाहता है,तो अगर पहली खरीद में पाकिस्तानी नही बिके तो इतना हल्ला क्यूँ?
ये तो बिलकुल बेवकूफी है अगर कोई कहे कि इसमें किसी प्रकार की कोई भी साजिश है.
मेरा मानना है कि जब तक खेल भावना रहेगी,खेल बढ़ता जाएगा,जब राजनीति आएगी,खेल मर जाएगा.......और बेतुके आरोप लगाने से बेहतर है कि अपने प्रदर्शन पर ध्यान दियाजाए.

गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

कभी कभी मैं सोचता हूँ की क्या इन्टरनेट पे व्यक्त किये हमारे उद्गार उन तक पहुँच पाते हैं जिनके लिए ये सारा शोर होता है.....हम बहस करते हैं,अपना नजरिया रखते हैं,कोई सहमत होता है,किसी का ख्याल एकदम जुदा होता है...हम एक दुसरे को गलत ठहराते हैं,समर्थन करते हैं.पर क्या हमारी सरकार को कोई फर्क पड़ता है?........एकदम नही.हाँ कभी किसी राजनेता पर व्यक्तिगत प्रहार करो,तब जरूर बवाल होता है,और कई बार हुआ भी है.....कौन कहता है कि लोकतंत्र में आम जनता का शासन होता है?मुझे ये बात किताबो में ही सच मालूम पड़ती है.....जैसे बेतिया में आम जनता लाइन में घंटो खड़े होकर अपना बिजली बिल जमा करती है...और हमेशा बिजली कि कमी का रोना रोती रहती है....वही प्रशासनिक अधिकारियो को निर्बाध आपूर्ति मिलती है......सरकार उन्हें बिजली के बिल का पैसा देती है...लेकिन जमा करने के लिए शायद किसी को नियुक्त नही करती...और कितनो पर तो सालों से बिल बकाया है,क्या कभी उनकी आपूर्ति रुकी?...नही।
अभिजात्य वर्ग का दबदबा हमेशा कि तरह अभी भी पुलिस,प्रशासन पे बरकरार है...तो क्या हम इसे आँख मूंदकर सामंतवाद कि समाप्ति माने?
मुझे नही लगता.आप क्या सोचते हैं......कि लोकतंत्र और सामंतवाद एक साथ प्रभावी हो सकते हैं?

बुधवार, 16 दिसंबर 2009

महंगाई का मजाक

बढती हुयी महंगाई की चिंता सबसे ज्यादा किसे है?जाहिर है आम आदमी को ही होगी,यूँ तो स्वांग सरकार भी चिंतित होने का करती है,लेकिन हकीकत यह है कि जिसे खाने से पहले पैसे गिनने पड़ते हैं,परेशानी उसे ही ज्यादा होती है,जिन्हें खाने का बिल अपनी जेब से देना पड़ता है.
यूँ चिंतित हमारे महानायक अमिताभ जी भी बहुत हैं,महंगाई के लिए...पहले मैं सोचता था कि बड़े लोग साधारण बाते नही सोचा करते..लेकिन शायद मैं गलत था....सभी लोग हार मान चुके हैं..इस महंगाई से,यहाँ तक कि मैं ये सोचने लगा था कि हमारे पुरे देश में कोई नेता ही नही है,साब के साब बस राजनीतिबाज ही हैं.पहले हमारे नेता होते थे जो नेतृत्वा करते थे,आज हमारे पास सिर्फ राजनीतिज्ञ हैं,जो जम के राजनीति करते हैं,हर मुद्दे,हर विपदा कब का उपयोग अपनी सत्ता कि साधना में विलोपित कर देते हैं..बेचारा आम आदमी अभी तक एक नेता की कमी से जूझता रहा है...शेर का मुखौटा पहन सियार शेर नही होता तो नेता का मुखौटा पहन के राजनीतिज्ञ नेता कैसे बन जाएगा.नेता सबसे आगे बढ़ने के लिए नही,सबको आगे बढ़ाने के लिए होता है.हमारे तथाकथित नेता राजनीति में जमने के बाद अनुसन्धान करते हैं ,ताकि नक़ल करके एक नेता की पदवी हासिल कर ले.हमारे युवराज भी इससे अलग नही हैं.
हाँ तो बात मैं महानायक की कर रहा था,जिस महंगाई से जनता सालों से त्रस्त है,अमिताभ जी ने चुटकियों में सुलझा दी.....हज्जाम की दुकान पे कल सुबह जब मैं गया तो मुह चिढ़ता एक विज्ञापन चिपका हुआ देखा.......देखते ही मैं अवाक रह गया....क्या सटीक उपाय सुझाया महानायक ने.......बानगी यों है...'बढती महंगाई...हाजमोला खाया सब कुछ पचाया'...पता नही ये लोगो से कह रहे थे या अपना खुद का अनुभव बयान कर रहे थे...मुझे तो इसमें लेष मात्र भी सच्चाई नजर नही आई.
क्या लोगो ने उन्हें इतना प्यार दिया,सम्मान दिया,इतनी उंचाई दी..उसमे कोई धोखा था?....शायद नही.
फिर जिस जनता ने उन्हें महानायक बनाया.....उसके साथ इतना बड़ा धोखा...वो भी चंद पैसो के लिए......कहीं खलता है.
जनता को उल्लू बनाने की कोशिश सिर्फ पैसो के लिए इतना बड़ा आदमी करे तो अफ़सोस होता है.
पैसे बनाइये,खूब बनाइये,किन्तु किसी की मजबूरी का मजाक ना बनाइये,बस यही कहना चाहता हूँ.

सोमवार, 2 नवंबर 2009

तरकश के तीर कम पड़ गए हैं...
धनुर्धारी छुट्टी पर है..
अब लोग खुद जग गए हैं....
जो होना हो हो जाये,
मेरी बला से.
हर पग पे तो घनश्याम भी नही आते...
मैं कैसे आऊँ?
तुम सब तो जी रहे हो....
अरे सुना मैंने,कुछ ही तो मरे न
उन्हें भी तो ५ लाख का चेक भेज दिया न मैंने...
स्वर्ग में तो बेचारे सुख भोगेंगे न.
भले ही धरती पे २ रोटी न दे पाया.
देखो,जो गया सो गया.
जो है,वो जी रहे हैं.
जन्म और मृत्यु तो यमराज का काम है.
अब बताओ,इस वक़्त भी सत्ता की परवाह न करुँ तो
तुम्हारी सेवा कैसे करूँगा?
संभालो धनुष,मांगो मन्नते.
तब तलक मैं सैरगाह से आता हूँ.
और जब मैं आम जन सभा में जाऊं तो मुखौटे जरुर लाना.

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2009

verse

रात के दो बजे एक भद्र पुरुष अकेले घर आ रहे थे.अचानक किसी ने गर्दन पे चाकू भिड़ा दी,बोला'चल पैसे निकाल.'
आदमी बोला'जानते नही मैं कौन हूँ?मैं यहाँ का मंत्री हूँ.'
चोर'अच्छा ये बात है....तब हमारे पैसे निकाल.'

Taking the safer road

when the country needs him,he is found in the villages,when the villages needed him,he was found at the world class universities.....
He is the super visionary,he views it as the best opportunity to grab the vote bank...
he knows,when the war will begin.no politician dies.........they are forever there to cash on these.
Great going mind Mr. Raul,but the countrymen can think now,by dismantling the education system in India,your government can not block the ideas here.
We dont feel happy about running the government for five years,we feel anxious about the price hikes,we are not happy about multi million deals,we feel satisfied at successfully obtaining a gas cyllinder.
We are the people,you are the prince.....
do you call it a democracy????

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009

FOR WHAT ?

3 months after the mumbai terror attack
the Indian government's stand is still a matter to be discussed that where it will lead us,or in a way,this case is out of limelight now.
many of the brave policemen sacrificed their lives for the sake of the people,the biggest attack of the recent history.
day by day,the terrorists got their opportunity to strike with more accuracy.........the government was busy in hiding the hills.
who is responsible,is a matter to be discussed...........but who suffered......the innocent public,who could never played a role in the decision making of their own lives.....................
Is it a fault by the side of government?????????
If yes,then why aren't they admitting it??????
If not,why Shivraj Patil,Deshmukh were sacked...........
Weren't they trying to decieve the public.
Is doesn't ends by blaming the government...........the analyzations after the hazard takes place everytime.......but if the preventive measures adopted by the government was that effective....why does it happens again again...........
The government too is almost enjoying the drama of comments between India and Pak.
But if the terrorist are uncurable by the Pakistan government,why not our government is taking a step and firmly asking Pakistan to provide him proper assistance in checking out terrorism.
But who cares if a common man suffers,In their view,common man is just a number to be counted in statics like........13 dead in this blast......35 died in terror attacs....give them compensation(which is often lower than every single cabinet minister's monthly allowances)..............
If anyone Died in the attacks would have been from the Politician's Family,then do you think the reaction would have been that slow,as is going in this case?????????
Then it must had been a taotally changed scenario for sure.........
And about the Terrorist Kasab,if he is not being granted death sentence,then who is a bigger sinner to be condemned with?
Why the stature and importance of a common man's life is counted worthless as compared with their so called representatives?
And for the least,what is the significance of wearing Khadi,when you can not move a step out of your luxury cars?
The country doesn't need a capable leader,it needs a dyanim leadership which can make them feel firmly that no one is smaller or weaker than the other fellow and the basis of distiguishing is nothing more than deeds and what you call merit.
So that a leader will not have to pay all his attention towards proving that he is not one to be condemned,but to attend his duty towards the betterment of we,the people of India.