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गुरुवार, 17 दिसंबर 2009

कभी कभी मैं सोचता हूँ की क्या इन्टरनेट पे व्यक्त किये हमारे उद्गार उन तक पहुँच पाते हैं जिनके लिए ये सारा शोर होता है.....हम बहस करते हैं,अपना नजरिया रखते हैं,कोई सहमत होता है,किसी का ख्याल एकदम जुदा होता है...हम एक दुसरे को गलत ठहराते हैं,समर्थन करते हैं.पर क्या हमारी सरकार को कोई फर्क पड़ता है?........एकदम नही.हाँ कभी किसी राजनेता पर व्यक्तिगत प्रहार करो,तब जरूर बवाल होता है,और कई बार हुआ भी है.....कौन कहता है कि लोकतंत्र में आम जनता का शासन होता है?मुझे ये बात किताबो में ही सच मालूम पड़ती है.....जैसे बेतिया में आम जनता लाइन में घंटो खड़े होकर अपना बिजली बिल जमा करती है...और हमेशा बिजली कि कमी का रोना रोती रहती है....वही प्रशासनिक अधिकारियो को निर्बाध आपूर्ति मिलती है......सरकार उन्हें बिजली के बिल का पैसा देती है...लेकिन जमा करने के लिए शायद किसी को नियुक्त नही करती...और कितनो पर तो सालों से बिल बकाया है,क्या कभी उनकी आपूर्ति रुकी?...नही।
अभिजात्य वर्ग का दबदबा हमेशा कि तरह अभी भी पुलिस,प्रशासन पे बरकरार है...तो क्या हम इसे आँख मूंदकर सामंतवाद कि समाप्ति माने?
मुझे नही लगता.आप क्या सोचते हैं......कि लोकतंत्र और सामंतवाद एक साथ प्रभावी हो सकते हैं?

बुधवार, 16 दिसंबर 2009

महंगाई का मजाक

बढती हुयी महंगाई की चिंता सबसे ज्यादा किसे है?जाहिर है आम आदमी को ही होगी,यूँ तो स्वांग सरकार भी चिंतित होने का करती है,लेकिन हकीकत यह है कि जिसे खाने से पहले पैसे गिनने पड़ते हैं,परेशानी उसे ही ज्यादा होती है,जिन्हें खाने का बिल अपनी जेब से देना पड़ता है.
यूँ चिंतित हमारे महानायक अमिताभ जी भी बहुत हैं,महंगाई के लिए...पहले मैं सोचता था कि बड़े लोग साधारण बाते नही सोचा करते..लेकिन शायद मैं गलत था....सभी लोग हार मान चुके हैं..इस महंगाई से,यहाँ तक कि मैं ये सोचने लगा था कि हमारे पुरे देश में कोई नेता ही नही है,साब के साब बस राजनीतिबाज ही हैं.पहले हमारे नेता होते थे जो नेतृत्वा करते थे,आज हमारे पास सिर्फ राजनीतिज्ञ हैं,जो जम के राजनीति करते हैं,हर मुद्दे,हर विपदा कब का उपयोग अपनी सत्ता कि साधना में विलोपित कर देते हैं..बेचारा आम आदमी अभी तक एक नेता की कमी से जूझता रहा है...शेर का मुखौटा पहन सियार शेर नही होता तो नेता का मुखौटा पहन के राजनीतिज्ञ नेता कैसे बन जाएगा.नेता सबसे आगे बढ़ने के लिए नही,सबको आगे बढ़ाने के लिए होता है.हमारे तथाकथित नेता राजनीति में जमने के बाद अनुसन्धान करते हैं ,ताकि नक़ल करके एक नेता की पदवी हासिल कर ले.हमारे युवराज भी इससे अलग नही हैं.
हाँ तो बात मैं महानायक की कर रहा था,जिस महंगाई से जनता सालों से त्रस्त है,अमिताभ जी ने चुटकियों में सुलझा दी.....हज्जाम की दुकान पे कल सुबह जब मैं गया तो मुह चिढ़ता एक विज्ञापन चिपका हुआ देखा.......देखते ही मैं अवाक रह गया....क्या सटीक उपाय सुझाया महानायक ने.......बानगी यों है...'बढती महंगाई...हाजमोला खाया सब कुछ पचाया'...पता नही ये लोगो से कह रहे थे या अपना खुद का अनुभव बयान कर रहे थे...मुझे तो इसमें लेष मात्र भी सच्चाई नजर नही आई.
क्या लोगो ने उन्हें इतना प्यार दिया,सम्मान दिया,इतनी उंचाई दी..उसमे कोई धोखा था?....शायद नही.
फिर जिस जनता ने उन्हें महानायक बनाया.....उसके साथ इतना बड़ा धोखा...वो भी चंद पैसो के लिए......कहीं खलता है.
जनता को उल्लू बनाने की कोशिश सिर्फ पैसो के लिए इतना बड़ा आदमी करे तो अफ़सोस होता है.
पैसे बनाइये,खूब बनाइये,किन्तु किसी की मजबूरी का मजाक ना बनाइये,बस यही कहना चाहता हूँ.