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सोमवार, 2 नवंबर 2009

तरकश के तीर कम पड़ गए हैं...
धनुर्धारी छुट्टी पर है..
अब लोग खुद जग गए हैं....
जो होना हो हो जाये,
मेरी बला से.
हर पग पे तो घनश्याम भी नही आते...
मैं कैसे आऊँ?
तुम सब तो जी रहे हो....
अरे सुना मैंने,कुछ ही तो मरे न
उन्हें भी तो ५ लाख का चेक भेज दिया न मैंने...
स्वर्ग में तो बेचारे सुख भोगेंगे न.
भले ही धरती पे २ रोटी न दे पाया.
देखो,जो गया सो गया.
जो है,वो जी रहे हैं.
जन्म और मृत्यु तो यमराज का काम है.
अब बताओ,इस वक़्त भी सत्ता की परवाह न करुँ तो
तुम्हारी सेवा कैसे करूँगा?
संभालो धनुष,मांगो मन्नते.
तब तलक मैं सैरगाह से आता हूँ.
और जब मैं आम जन सभा में जाऊं तो मुखौटे जरुर लाना.

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